देहरादून। बॉबी पंवार नाम सुनते ही अब लोगों को आंदोलन, झूठे आरोप, और सस्ती राजनीति की याद आने लगी है। इस बार उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के नाम पर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने दो टूक कह दिया – “ये जनहित नहीं, ‘पैसा वसूल’ याचिका है!”
उच्च न्यायालय द्वारा बॉबी पंवार की जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज किया जाना न सिर्फ कानूनी रूप से एक बड़ा झटका है, बल्कि यह उनके राजनीतिक स्टंट और सस्ती लोकप्रियता की असलियत को भी उजागर करता है। हैरानी की बात यह है कि कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बॉबी पंवार की याचिका में कोई निष्कलंक मंशा नहीं है। इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी कहा कि यह मामला पहले से ही राज्य सरकार द्वारा जाँच के बाद बंद किया जा चुका है और अगर बॉबी को वास्तव में कोई शिकायत है तो उन्हें निचली अदालत में जाना चाहिए, न कि सीधे हाईकोर्ट में।
क्या बॉबी को नहीं पता कि भारतीय न्याय व्यवस्था में हर स्तर पर एक प्रक्रिया होती है? लोग ये भी पूछ रहें हैं कि क्या बॉबी जानबूझकर सिर्फ हाईकोर्ट की मीडिया हेडलाइन पाने के लिए सीधे वहाँ पहुँचे? यह वही बॉबी पंवार हैं जो पहले भी युवाओं को भड़काकर सड़कों पर आंदोलन करवाते हैं, और जब कोई अधिकारी या संस्था उनकी मनमानी में साथ नहीं देती, तो उस पर झूठे आरोप और ब्लैकमेलिंग के हथकंडे अपनाते हैं।
क्या बॉबी पंवार को न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है? या फिर यह पूरा ड्रामा सिर्फ अपनी राजनीतिक चमक को बनाए रखने के लिए किया गया शिगूफ़ा था? हाईकोर्ट ने उन्हें न सिर्फ सही मंच (ट्रायल कोर्ट) का रास्ता दिखाया, बल्कि उनकी मंशा पर भी सवाल खड़े किए। साफ है कि बॉबी पंवार का यह प्रयास जनहित नहीं, निजी स्वार्थ और पब्लिसिटी स्टंट था।